मंगलवार, 18 सितंबर 2012

धूप लुटा कर सूरज जब कंगाल हुआ
चाँद उगा फिर से अम्बर मालामाल हुआ
सांझ लुढक कर ड्योडी पर आ फिसली है
आँगन से चौबारे तक सब लाल हुआ
जिक्र छिड़ा हैं जब भी उनका यारों में
खुशबू ख़ुशबू सारा ही चोपाल हुआ
उम्र वहीँ ठिठकी है जब तुम छोड़ गए
लम्हा दिन सप्ताह महीना साल हुआ
धूप  अटक कर बैठ गयी हैं छज्जे पर
ओसारे का उठना आज मुहाल हुआ
चुन चुन कर वो देता था हर दर्द मुझे
चोट लगी जब खुद को तो बेहाल हुआ
कल तक जो देता था उत्तर प्रश्नों का
आज वही उलझा सा सवाल हुआ
छुटपन में जिसकी संगत थी चैन मेरा
उम्र बढी तो वो जी का जंजाल हुआ
                                  गौतम राजरिशी 

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