सोमवार, 10 सितंबर 2012

यायावर

भीड़ भरी इस दुनिया में हम इक  चेहरा पहचान गए !
उसकी आँखों की उम्मीदों को हम पल में  गए !!
 लिए हथेली पर सूरज को वो परदेसी निकला था !
उजियारे  के दुश्मन  सारे  शस्त्र उसी पे तान गए !!
दरवाजे पर उसने दस्तक दी तब हम भी चौंके थे !
उसकी कुछ कहने की जिद्द पर हम भी कहना मान गए !
घर से निकला था दुनिया को कुछ   दस्तूर बताने को !
दुनिया के दोहरेपन से ही उसके सब अरमान गए !!
कुछ आंसू  , कुछ उम्मीदें , कुछ सपने अपने छोड़ गया !
उस यायावर की खातिर , हम सारी दुनिया छान गए गए !!