रेत के गाँव में नदी जैसे ,
मिल गए आप जिंदगी जैसे !
छु गई इस तरह हरी आँखे ,
हम हुए सावनी सदी जैसे !
पार र्द्शी गुलाब सी काया ,
झील में धूप की हंसी हँसी जैसे !
एक रिश्ता कहीं उगा भीतर ,
चाँद के साथ चांदनी जैसे !
आपकी याद हवा ले आई ,
हो गयी शाम शायरी जैसे !
- डॉ हरीश निगम
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